सड़क हादसों की बढ़ती वजह: अवैध पार्किंग और हाईवे किनारे ढाबे
सड़क हादसे एक बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी हैं, जो पल भर में हँसते-खेलते परिवारों को उजाड़ देती हैं। इनमें किसी अपने की जान जाना या जीवन भर की अपंगता पूरे परिवार को गहरे सदमे में डाल देती है। हादसे के बाद केवल आर्थिक नुकसान ही नहीं होता, बल्कि मानसिक और भावनात्मक पीड़ा भी लंबे समय तक बनी रहती है। बच्चों का भविष्य प्रभावित होता है और बुज़ुर्ग सहारे से वंचित हो जाते हैं। समाज पर भी इसका व्यापक असर पड़ता है, क्योंकि कार्यशील नागरिकों की क्षति से सामाजिक-आर्थिक विकास बाधित होता है। अस्पतालों और आपात सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इन हादसों का सबसे दुखद पहलू यह है कि अधिकांश दुर्घटनाएं थोड़ी-सी सावधानी और नियमों के पालन से रोकी जा सकती हैं। इसलिए सड़क सुरक्षा को केवल कानून नहीं, बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में समझना बेहद जरूरी है।
घना कोहरा व धुंध सड़क हादसों का प्रमुख कारण:-
हाल ही में यमुना एक्सप्रेसवे पर मथुरा के पास 16 दिसंबर 2025 मंगलवार तड़के कोहरा 13 लोगों के लिए काल बन गया। दरअसल, कोहरे के कारण दृश्यता शून्य होने के कारण आपस में टकराने से वाहनों में आग लग गई, जिससे यात्री जिंदा जलकर मर गये। जानकारी के अनुसार हादसा इतना भीषण था कि सौ से अधिक लोग इसमें घायल हो गए। वास्तव में, घने कोहरे के कारण आगे चल रहा वाहन डिवाइडर से टकराकर संतुलन खो बैठा और इसके बाद पीछे से आ रहे वाहन एक के बाद एक टकराते चले गए। इससे वाहनों में आग लग गई। गहरी नींद में सो रहे यात्रियों की तेज आवाज से आंख खुली तो चीख-पुकार मच गई और वे जान बचाने के लिए जलते वाहनों से कूदने लगे। आशंका है कि सीएनजी वाहन में विस्फोट से आग लगी। दमकलों ने जब तक आग पर काबू पाया, 14 वाहन जल चुके थे। इनमें आठ बसें और एक कार शामिल है। ये बसें यूपी, बिहार, अरुणाचल प्रदेश से दिल्ली आ रही थीं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना पर दुख जताया है। उन्होंने कहा है कि, ‘मेरी संवेदनाएं अपनों को खोने वाले परिवारों के साथ हैं।’ भीषण हादसे के बाद प्रधानमंत्री राहत कोष से प्रत्येक मृतक के परिजनों को दो-दो लाख और घायलों को 50 हजार रुपये देने की घोषणा की गई है। वहीं, यूपी के मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख और घायलों को 50-50 हजार की मदद देने का ऐलान किया है।
सड़क हादसों के लिए वाहन चालकों की लापरवाही ही जिम्मेदार नहीं:-
हाल फिलहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि हाल के दिनों में राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेस-वे पर जो बड़े सड़क हादसे हुए हैं, उनके लिए सिर्फ वाहन चालकों की लापरवाही ही जिम्मेदार नहीं है।सच तो यह है कि सड़क किनारे बने ढाबे और होटल भी इन दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण बन रहे हैं। अक्सर इन ढाबों के सामने ट्रक, बस या अन्य वाहन सड़क के किनारे खड़े कर दिए जाते हैं और सड़क पर तेज रफ्तार से दौड़ने वाली गाड़ियां उन्हें समय पर देख नहीं पातीं और उनसे टकरा जाती हैं। इसका गंभीर उदाहरण कुछ समय पहले ही राजस्थान के फलोदी में हुआ एक हादसा है, जहां सड़क किनारे खड़े एक ट्रेलर से टेम्पो ट्रैवलर टकरा गया। मीडिया में आईं खबरों के अनुसार इस दुर्घटना में 10 महिलाओं और 4 बच्चों सहित कुल 15 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया और सुनवाई के दौरान एनएचएआई यानी कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (नेशनल हाइवेज अथारिटी ऑफ इंडिया)और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने साफ कहा कि राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेस-वे के किनारे बने अवैध ढाबे और होटल सड़क हादसों की बड़ी वजह हैं और इन्हें रोकने के लिए देशभर में लागू होने वाले नियम बनाने की जरूरत है। वास्तव में, असल समस्या यह है कि कई ढाबे और होटल लाभ कमाने के उद्देश्य से बिना पर्याप्त पार्किंग के ही सड़क किनारे खोल दिए जाते हैं और वहां ठहरने वाले लोग मजबूरी में अपनी गाड़ी सड़क पर खड़ी कर देते हैं, जबकि इन सड़कों पर वाहन बहुत तेज रफ्तार से चलते हैं। ऐसे में हादसों का खतरा लगातार बना रहता है। सवाल यह है कि ऐसे ढाबों को बिना नियम-कानून के चलने की इजाजत किसने दी और अब तक सरकार ने इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की ? क्या ऐसे ढ़ाबा व होटल मालिकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए ? यह विडंबना ही है कि आज हमारे देश में सड़क किनारे खुलने वाले ढाबे, रेस्टोरेंट और होटल अक्सर बिना किसी ठोस नियम-कानून के संचालित हो रहे हैं। ये जहां जगह मिल गई, वहीं बना दिए जाते हैं, जिससे यातायात व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है। अधिकांश ढाबों के सामने वाहनों की अवैध पार्किंग रहती है, या बहुत से स्थानों पर तो पार्किंग व्यवस्थाएं होतीं ही नहीं हैं, ऐसे में वाहनों को यत्र-तत्र अव्यवस्थित रूप से पार्क करना पड़ता है, जो सड़क हादसों का कारण बनती है। वास्तव में ऐसी जगहों पर न तो यहां सुरक्षित पार्किंग की व्यवस्था होती है और न ही प्रवेश-निकास के लिए निर्धारित स्थान। कई जगहों पर तो पीने के पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव देखने को मिलता है। इससे यात्रियों को, वाहन चालकों को परेशानी होती है और आसपास गंदगी भी फैलती है।यह एक कड़वा सच है कि स्वच्छता और सुरक्षा मानकों की खुलेआम अनदेखी की जाती है। जरूरत है कि ऐसे ढाबों और होटलों के लिए स्पष्ट नियम बनाए जाएं और उनका सख्ती से पालन कराया जाए।
आंकड़े बयां करते हैं सड़क हादसों की भयावहता:-
हाल फिलहाल, यदि हम यहां पर आंकड़ों की बात करें तो 2025 में भारत में सड़क हादसों की स्थिति बेहद चिंताजनक बनी हुई है। उपलब्ध सरकारी व मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, जनवरी से जून 2025 के बीच केवल राष्ट्रीय राजमार्गों पर ही लगभग 67,900 से अधिक सड़क दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें करीब 29,000 लोगों की मौत हुई। यह आंकड़ा दर्शाता है कि हर दिन औसतन 150 से अधिक लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवा रहे हैं। तेज रफ्तार, ओवरलोडिंग, शराब पीकर वाहन चलाना, ट्रैफिक नियमों की अनदेखी और सड़क किनारे अव्यवस्थित ढाबे-पार्किंग जैसी समस्याएँ इन हादसों के प्रमुख कारण बने हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यदि यही रुझान जारी रहा, तो 2025 में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की कुल संख्या पिछले वर्षों के रिकॉर्ड को भी पार कर सकती है, जो सड़क सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। वास्तव में आज देश में सड़कें तो तेजी से बन रही हैं, लेकिन उन पर सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने को उतनी गंभीरता नहीं दी जा रही। हादसों के कारण बार-बार सामने आने के बावजूद ठोस नीति और सख्त नियम लागू नहीं किए जा रहे हैं। अगर समय रहते अवैध ढाबों, पार्किंग व्यवस्था और सड़क सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया, तो ऐसे हादसे आगे भी होते रहेंगे और देश को जान-माल का भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों के पालन की जिम्मेदारी पूरे समाज की है:-
बहरहाल, यहां यह भी कहना ग़लत नहीं होगा कि हमारे देश में दिसंबर-जनवरी ठंड के महीने होते हैं और इस दौरान देश के कई हिस्सों, विशेषकर पानी वाले इलाकों में घना कोहरा व धुंध छा जाती है, जिससे सड़क पर दृश्यता बेहद कम हो जाती है। ऐसे हालात में वाहन चलाते समय विशेष सावधानी बरतना अनिवार्य है। मोबाइल फोन का उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह ध्यान भटकाता है और दुर्घटना का खतरा बढ़ाता है। शराब या किसी भी प्रकार के नशे में वाहन चलाना जानलेवा साबित हो सकता है। यदि नींद या थकान महसूस हो रही हो तो वाहन रोककर विश्राम करना ही सुरक्षित विकल्प है। इसके साथ ही यातायात नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए, गति सीमित रखनी चाहिए और सीट बेल्ट अवश्य लगानी चाहिए, क्योंकि यह दुर्घटना की स्थिति में जान बचाने में अहम भूमिका निभाती है। वास्तव में,सावधानी और जिम्मेदारी ही ठंड व कोहरे के मौसम में सुरक्षित यात्रा की कुंजी है। निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों का पालन किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि यह हमारे पूरे समाज की एक सामूहिक जिम्मेदारी है। अधिकतर सड़क हादसे तेज़ गति, नशे में ड्राइविंग, मोबाइल फोन के प्रयोग और यातायात के नियमों की अनदेखी के कारण होते हैं। हेलमेट, सीट बेल्ट, लेन ड्राइविंग और ट्रैफिक संकेतों का पालन करने से दुर्घटनाओं में भारी कमी लाई जा सकती है। सड़कों की खराब स्थिति, अव्यवस्थित पार्किंग और अतिक्रमण भी हादसों को बढ़ावा देते हैं। सरकार, प्रशासन और नागरिकों सभी को मिलकर सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। जागरूकता अभियान, सख्त कानून और उनका ईमानदार क्रियान्वयन बेहद आवश्यक है। सुरक्षित सड़कें केवल नियमों से नहीं, बल्कि जिम्मेदार व्यवहार से बनती हैं। यदि समय रहते सावधानी बरती जाए, तो अनमोल जानें बचाई जा सकती हैं।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कॉलमिस्ट व युवा साहित्यकार, पिथौरागढ़,उत्तराखंड




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