कोबरापोस्ट की जांच से मचा हड़कंप: चोलामंडलम फाइनेंस पर 10 हजार करोड़ से अधिक के संदिग्ध लेन-देन का आरोप
खोजी पत्रकारिता मंच कोबरापोस्ट की ताज़ा जांच रिपोर्ट ने देश के प्रतिष्ठित मुरुगप्पा ग्रुप और उसकी प्रमुख वित्तीय इकाई चोलामंडलम इन्वेस्टमेंट एंड फाइनेंस कंपनी लिमिटेड (CIFCL) को कटघरे में खड़ा कर दिया है। रिपोर्ट में 10,000 करोड़ रुपये से अधिक के कथित वित्तीय हेरफेर और संदिग्ध लेन-देन का खुलासा किया गया है, जिसे लेकर कॉरपोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
कोबरापोस्ट के अनुसार, बीते छह वर्षों में CIFCL द्वारा देश के 14 बैंकों में लगभग 25,000 करोड़ रुपये नकद जमा किए गए। इनमें सार्वजनिक और निजी, दोनों तरह के बैंक शामिल हैं। रिपोर्ट का दावा है कि यह आंकड़ा सार्वजनिक दस्तावेजों और कॉरपोरेट फाइलिंग के आधार पर सामने आया है और नियामकीय जांच के दौरान इसमें और बढ़ोतरी संभव है।
जांच में यह भी आरोप लगाया गया है कि मुरुगप्पा ग्रुप की विभिन्न कंपनियों के बीच बड़े पैमाने पर लेन-देन को वर्क कॉन्ट्रैक्ट, प्रोफेशनल फीस और कमीशन के रूप में दिखाया गया, लेकिन उन्हें आवश्यक रूप से ‘संबंधित पक्ष लेन-देन’ (Related Party Transactions) के तौर पर घोषित नहीं किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, जहां कुल लेन-देन करीब 10,000 करोड़ रुपये का आकलन किया गया, वहीं आधिकारिक रूप से केवल 2,161 करोड़ रुपये ही RPT के रूप में दर्शाए गए।
कोबरापोस्ट ने मुरुगप्पा मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को भी जांच के दायरे में रखा है। आरोप है कि इस इकाई के माध्यम से लगभग 675 करोड़ रुपये का फंड डायवर्जन किया गया और ग्रुप की कई कंपनियों से रकम निकालकर परिवार के सदस्यों, वरिष्ठ अधिकारियों और अन्य संस्थाओं को भुगतान किया गया।

रिपोर्ट में परिवार और शीर्ष प्रबंधन को करोड़ों रुपये के भुगतान, रेटिंग एजेंसियों और ऑडिट फर्मों को दी गई भारी फीस, साथ ही कुछ गैर-लाभकारी और धार्मिक संस्थाओं को किए गए भुगतान का भी जिक्र है। इन सभी लेन-देन को कंपनी कानून, सेबी के नियमों और अन्य नियामकीय दिशानिर्देशों के संभावित उल्लंघन के तौर पर देखा जा रहा है।
हालांकि, रिपोर्ट प्रकाशित होने से पहले भेजी गई प्रश्नावली के जवाब में चोलामंडलम समूह ने सभी आरोपों को खारिज किया है। कंपनी का कहना है कि उसके सभी वित्तीय लेन-देन कानून और नियमों के अनुरूप हैं और किसी भी प्रकार की गलत प्रस्तुति या बदनामी के खिलाफ कानूनी कदम उठाए जाएंगे।
इस पूरे मामले ने निवेशकों के भरोसे, कॉरपोरेट पारदर्शिता और नियामकीय निगरानी की भूमिका पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। अब सबकी नजर इस पर है कि संबंधित नियामक एजेंसियां इस खुलासे पर क्या कार्रवाई करती हैं।





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